Monday 10 October 2016

ॐॐॐ जय श्री राम ॐॐॐ

भज श्री राम
भज श्री राम
श्री राम
जय राम
जय जय राम
आज में सुंदर कांड का पाठ कर रहा था और उनके गूढ़ अर्थो को समझने का प्रयास कर रहा था,एक बात समझ में आई कि इन चौपाइयों से हमें अपने जीवन से सम्बन्घित बड़ी सीख मिलती है जो आपसे बॉटने का मन कर आया।। सुन्दर काण्ड में हनुमान जी को यदि हम यहाँ जीव मान ले और माता सीता को भक्ति मान ले अर्थात जब जीव भक्ति की खोज में बढ़ता है तो जीवन में कैसी कैसी कठनाई आती है।।
1 सबसे पहले हनुमान जी को स्वर्ण पर्वत मिलता है और वो आग्रह करता है कि आप यही विश्राम कर ले अर्थात जब जीव की भक्ति कुछ पकती हे तो उसे कुछ पॉजिटिव ऊर्जा प्राप्त होती है जिसके बल पर वो आम जनमानस को प्रभावित करता है किंतु सबसे पहले सुन्दर काण्ड के अनुसार स्वर्ण पर्वत मिलता है अर्थात जीव धन माया के वशीभूत होकर वही ठहर जाता है और आगे का मार्ग वही अवरुद्ध हो जाता है जैसे वर्तमान महापुरुख इसी का अनुसरण कर धन माया में मग्न होकर भक्ति की अधूरी यात्रा करते हे किन्तु हनुमान जी वहाँ नहीं रुके और आगे बढ गए अर्थात पहली बाधा धन माया हे जिससे बचना हे ।।
2, दूसरी बाधा वरदान प्राप्त सुरसा हनुमान जी को मिलती है जिसे शक्तियां प्राप्त है आप कितने भी बढ जाये आपसे अधिक बड़ा रूप वो धारण कर सकती है  यहाँ रामायण ये सन्देश दे रही है कि यदि आप भक्ति या किसी भी विषय में तरक्की कर रहे हे तो समाज के शक्तिशाली लोगो का विरोध लड़ना पडेगा उनकी हींन भावना का शिकार होना पड़ेगा यहाँ हनुमान जी ये शिक्षा दे रहे हे यहाँ आप बुद्धि चातुर्य से काम ले प्यार से हाथ जोड़कर उनका अहंकार पूर्ण कर दे जैसे हुनमान जी ने सुरसा के मुख में जाकर उनकी शर्त भी पूरी कर दी और बाहर आकर चालाकी से विन्रमता से हाथ जोड़कर मार्ग से हट जाने का निवेदन किया मात्र इतने प्रयास से ही सुरसा की सन्तुष्टि हो गई और मार्ग छोड़ दिया चाहते तो वध भी कर सकते थे किंतु उसको भी वरदान था अनावश्यक समय व्यर्थ ना हो और हम अपने लक्ष्य से ना भटके ,समाज के कुछ शक्तिशाली लोग मात्र कुछ मान बड़ियायी से ही खुश हो जाते हे तो उन्हे उसी अनुसार निपटाना चाहिए इस प्रकार आप उनसे लाभ उठा सकते हे,।।

3 तीसरी सीख आगे ऐसी शक्ति मिलती है जो परछाई पकड़ती हे  अर्थात ईर्ष्या जो कभी नहीं चाहेगी की उससे ऊपर कोई बढ़ जाये हम सभी महसूस करते हे की समाज में ऐसे लोगो की कमी नहीं है यहाँ हनुमान जी उसका वध कर ये सीख देते है कि जीवन में जलन द्वेष ईर्ष्या का वध करना चाहिए उसे पनपने नहीं देना चाहिए ना जाने किस मोड़ पर आघात कर दे ऐसे कर्म ना करे कि इनका सामना करना पड़े और पड़े भी तो उसका निर्मूल नाश कर दे अर्थात किसी के मन से हो सके तो ये भाव ही उत्पन्न ही ना हो ऐसा प्रयास करे।।
4 रावण के भवन के बाहर लंकनी राक्षणी का पहरा हे या कहे जैसे जैसे जीव भक्ति के अति निकट आता है तो चुनोतियाँ और बड़ी हो जाती है यहाँ सूक्ष्म से सूक्ष्म किया रूप या कर्म भी निगरानी में होता है जैसे आजकल सीसीटीवी कैमरे के अंदर रिकॉर्ड हो जाता है वैसे ही लंकनी रावण का कैमरा थी यहाँ हनुमान जी अति लघु रूप रखकर अंदर जाने का प्रयास करते हे फिर भी पकडे जाते हे वहां मुष्टिख प्रहार कर उसे ज्ञान देते है और अपनी भक्ति पिपासा का बोध कराते हे अर्थात भक्ति के दुर्ग में प्रवेश से पहले अपनी पिपासा और जिज्ञासा को अधिकतम सीमा तक बढ़ने का प्रयत्न करना चाहये और अपने को अहंकार रहित बहुत छोटा और हल्का बनाना चाहिए ताकि हम ऊपर उठ सके और भक्ति के दुर्गमार्ग में जो अति लघु मार्ग है प्रवेश कर सके।।।
5 अंतिम पड़ाव में महल के अंदर हनुमान जी उसी लघु रूप में सावधानी पूर्वक भक्ति की खोज करते हे जहा रात्रि में निशाचर काम और विकारो से वशीभूत मायावी नगरी सोने ऐश्वर्ये की लंका प्रभावित करने और पतित होने के सारे साधन खुली किताब की तरह दृष्टिगोचर होते है यहाँ ये सन्देश मिलता है कि ऐसे स्तर पर हमारे विकार हमें भयंकर तरीके से प्रभावित करते हे हमें बचना हे और जभी बचेगे यदि विकार रहित होकर पाप रहित होकर अहंकार रहित होकर हल्के होंगे।।  और अंत में अन्तरमार्ग में कोउ राम प्यारा भक्त आपका मार्गदर्शन स्वतः ही भक्ति का पता बताकर धन्य कर देगा जैसे विभीषण ने हनुमाब जी को माँ भक्ति का पता बताया
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धन्यवाद ।।।।।
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श्रीराम कथा हनुमानजी को अतिप्रिय है और सुन्दरकाण्ड में तो हनुमान जी के पराक्रम का बहुत प्यारा वर्णन है तो एक प्रसंग इस पोस्ट पर ताकि राम भक्ति का रस सभी को मिले
जिस समय हनुमानजी के पूछ पर आग लगाई जा रही थी एक राक्षसी दौड़कर सीता माँ के पास आई और बोली सीते! तुम जिस वानर से बात कर रही थी उसकी पूछ को आग लगाईं जा रही है और उसे अत्यंत अपमान के साथ लंका के गलियो में घुमाया गया है
माता सीता काँप गयी उन्होंने दृष्टी उठाकर देखा तो विशाल लंकापुरी में प्रचंड ज्वाला फैली हुई थी वो अत्यंत व्याकुल हो गयी और व्याकुल मन से उन्होंने अग्निदेव से प्रार्थना की कि हे अग्निदेव अगर मैं अपने प्राणनाथ की विशुद्ध सेविका हूँ मुझमे पतिव्रत धर्म और तपस्या का बल है तो मेरा सुनो और पवनपुत्र हनुमान के लिए अत्यंत शीतल हो जाओ। एक तो माँ सीता का तेज उनके पतिव्रत धर्म की शक्ति में इतना बल था क़ि वो सम्पूर्ण सृष्टि को भी उलटपुलट कर सकती थी। अखिल सृष्टि की स्वामिनी जगजननी माता सीता जो स्वयं शक्ति थी उनकी प्रार्थना अग्निदेव ने सुनी और वो हनुमानजी के लिए शांत भाव से जलने लगे खुद हनुमानजी भी चकित हो गए थे अरे विशाल अट्टालिकाएं धाय धाय जल रही है और मैं बिलकुल सुरक्षित हूँ ये जरूर मेरी माता सीता की दया मेरे प्रभु श्री राम का तेज है तभी अग्निदेव भी मेरे लिए शीतल बन गए
बोलिए श्री हनुमानजी की जय
बोलिए माँ सीता की जय
बोलिए सीतापति श्री रामचन्द्र जी महाराज की जय
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हनुमान जी की सामान्य पूजा विधि
  1. सर्वप्रथम हनुमान जी की प्रतिमा या फोटो सामने ऊँचे सिंघासन पर रखें।
  2. स्वयं के लिए कुश का आसन बिछाये।
  3. हनुमान जी के लिए लाल पुष्प चढ़ाये।
  4. चमेली के तेल का दीपक जलाएं।
  5. धुप लगाये।
  6. फूल चढ़ाये।
  7. लड्डू का भोग लगाएं।
  8. हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  9. सिन्दूर चढ़ाये।
  10. जनेऊ चढ़ाये।
  11. अब आरती करें।
Balaji Maharaj ke adhik niyam ke lia Yhan Click Karen!!!
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जो भगवान का आश्रय लेकर साधना करते हैं उनके लिए भगवान बड़े सुलभ हो जाते हैं।
एक बात याद करलो कि हम भगवान के ख़ास बेटा बेटी हैं।ये बात मन में जमा लो कि हम सिर्फ भगवान के हैं।
राम🙏🏻
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अयोध्या में स्थित यह सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। यह मंदिर अयोध्या में सरयू नदी के दाहिने तट पर एक ऊंचे टीले पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए लगभग 60 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यहां पर स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा केवल छः (6) इंच लंबी है, जो हमेशा फूलमालाओं से सुशोभित रहती है।

इस मंदिर के जीर्णोद्धार के पीछे एक कहानी है। सुल्तान मंसूर अली लखनऊ और फैजाबाद का प्रशासक था। तब एक बार सुल्तान का एकमात्र पुत्र बीमार पड़ा। वैद्य और डॉक्टरों ने जब हाथ टेक दिए, तब सुल्तान ने थक-हारकर आंजनेय के चरणों में अपना माथा रख दिया। उसने हनुमान से विनती की और तभी चमत्कार हुआ कि उसका पुत्र पूर्ण स्वस्थ हो गया। उसकी धड़कनें फिर से सामान्य हो गईं।

तब सुल्तान ने खुश होकर अपनी आस्था और श्रद्धा को मूर्तरूप दिया- हनुमानगढ़ और इमली वन के माध्यम से। उसने इस जीर्ण-शीर्ण मंदिर को विराट रूप दिया और 52 बीघा भूमि हनुमानगढ़ी और इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई। संत अभयारामदास के सहयोग और निर्देशन में यह विशाल निर्माण संपन्न हुआ। 300 साल पहले संत अभयारामदास निर्वाणी अखाड़ा के शिष्य थे और यहां उन्होंने अपने संप्रदाय का अखाड़ा भी स्थापित किया था

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आम धारणा यह है की स्त्रियों को हुनमान जी की पूजा नहीं करनी चाहिये। परन्तु यह गलत धारना है।

🔹 हनुमान जी ने प्रत्येक स्त्री को मां समान दर्जा दिया है। यही कारण है कि किसी भी स्त्री को अपने सामने प्रणाम करते हुए नहीं देख सकते बल्कि स्त्री शक्ति को वो स्वयं नमन करते हैं। यदि महिलाएं चाहे तो हनुमान जी की सेवा में दीप अर्पित कर सकती हैं। हनुमान जी की स्तुति कर सकती हैं। हनुमान जी को प्रसाद अर्पित कर सकती हैं। लेकिन 16 उपचारों जिनमें मुख्य स्नान, वस्त्र, चोला चढ़ाना आते हैं, ये सब सेवाएं किसी महिला के द्वारा किया जाना हनुमान जी स्वीकार नहीं करते हैं।

🔹 हनुमान जी ने सूर्य देवता को अपना गुरु बनाया था। सूर्य देवता ने नौ प्रमुख विद्याओं में से पांच विद्या अपने शिष्य हनुमान को सिखा दी थी। लेकिन जैसे ही बाकी चार विद्याओं को सिखाने की बारी आई। तब सूर्य देव ने हनुमान जी से शादी कर लेने के लिए कहा क्योंकि ये विद्याओं का ज्ञान केवल एक विवाहित को ही दिया जा सकता था। अपने गुरु की आज्ञा से हनुमान ने विवाह करने का निश्चय कर लिया। हनुमान जी से विवाह के लिए किस कन्या का चयन किया जाए, जब यह समस्या सामने आई। तब सूर्य देव ने अपनी परम तेजस्वी पुत्री सुवर्चला से हनुमान को शादी करने की प्रस्ताव दिया। हनुमान जी और सुवर्चला की शादी हो गई। सुवर्चला परम तपस्वी थी। शादी होने के बाद सुवर्चला तपस्या में मग्न हो गई। उधर हनुमान जी अपनी बाकी चार विद्याओं के ज्ञान को हासिल करने में लग गए। इस प्रकार विवाहित होने के बाद भी हनुमान जी का ब्रह्मचर्य व्रत नहीं टूटा।

  हनुमान जी सदा ब्रह्मचारी रहें। शास्त्रों में हनुमान जी की शादी होने का वर्णन मिलता है। लेकिन ये शादी भी हनुमान जी ने वैवाहिक सुख प्राप्त करने की इच्छा से नहीं की। बल्कि उन 4 प्रमुख विद्याओं की प्राप्ति के लिए की थी। जिन विद्याओं का ज्ञान केवल एक विवाहित को ही दिया जा सकता था।

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भक्ति की संभावना वहीं होती है , जहाँ अहंकार का आभाव होता है l भक्त वही है जिसका स्वाभाव सरल हो l भक्ति में तर्क और शंका बाधक है lभक्ति महारानी दीनता के सिंहासन पर विराजती हैं l

राम👏🏻

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जय सीतारामजी
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा भगवान श्री राम के सेवक हनुमान जी का प्रताप चारों युग में रहा है। वे किसी एक युग के अधीन नहीं थे। सतयुग और त्रेता युग में भगवान राम की कथा में, द्वापर में अर्जुन के रथ की धर्मध्वजा में और अब कलयुग में भी पूज्यनीय हैं, सभी युगों में उनका महत्व रहा है। हनुमान जी को भगवान राम के संकीर्तन से ही लगाव रहा और उन्होंने अपने कृत्यों को भगवान श्री राम की कृपा ही निरूपित किया। हनुमान जी ने गोस्वामी तुलसी दास को रामायण लिखने की प्रेरणा दी। तुलसीदास ने ही रामायण लिखने के बाद हनुमान चालीसा में उक्त बात लिखकर कहा कि चारों युग में हनुमान जी का प्रताप रहा है।

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जो व्यक्ति नित्य सुबह और शाम हनुमान चालीसा पढ़ता रहता है उसे कोई भी व्यक्ति बंधक नहीं बना सकता। उस पर कारागार का संकट कभी नहीं आता। यदि किसी व्यक्ति को अपने कुकर्मों के कारण कारागार (जेल) हो गई है, तो उसे संकल्प लेकर क्षमा-प्रार्थना करना चाहिए और आगे से कभी किसी भी प्रकार के कुकर्म नहीं करने का वचन देते हुए हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें। हनुमानजी की कृपा हुई तो कारागार से ऐसे व्यक्ति मुक्त हो जाते हैं।


श्री हनुमान जी सबका मंगल करें।

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यदि घर के मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति खंडित हो अथवा टूटी मूर्ति हो तो कभी भी उनकी पूजा नहीं करनी चाहिए. शस्त्रों में खंडित मूर्ति की पूजा अशुभ मानी गई है तथा हनुमान जी के खंडित मूर्ति की पूजा अशुभ प्रभाव लाती है।

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दस हजार हष्ट-पुष्ट हाथियों का बल एक ऐरावत हाथी(इंद्र का वाहन) में है। दस हजार ऐरावत हाथियों का बल अकेले देवराज इंद्र में है। दस हजार इन्द्रो का बल हनुमान जी के शारीर के केवल एक रोम में है।
-वायु पुराण

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प्रेत बाधा मुक्ति का उपाय
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सामग्री
लौंग का जोड़ा, फूल का जोड़ा, इलाइची, पान और पेड़ा।

एक दोना लेकर उसमें सबसे पहले पान रखें। उसके ऊपर फूल अन्य वस्तुएं रखकर भूतबाधा से पीडि़त व्यक्ति के नाम राशि के ग्रह का मंत्र 108 बार पढ़ें। यह कार्य पवित्र होकर दोना सामने रखकर करें। इसके पश्चात सात बार मंत्र पढ़ते हुए उस दोने को रोगी के सिर से पांव तक उतार कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से प्रेत बाधा शांत हो जाती है |

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भूत की ताकत

भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं।

कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं।

इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं।

ठोसपन होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।

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भूतों से बचाव

हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेकों उपाय बताए गए हैं। पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में या रुद्राक्ष का लाकेट पहने, सदा हनुमानजी का स्मरण करें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्य को पवित्रता का पालन करें। शराब पीएं और ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें।

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आत्माओ के रहस्य

भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।

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अगर मंगल ग्रह आपके जीवन में स्वास्थ्य समस्या खड़ी करता हैं और आप इस समस्या से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं तो मंगलवार को हनुमान जी को चोला के साथ चमेली का तेल, सिंदूर और चने के साथ सूरजमूखी के फूल चढ़ाएं। इसके बाद में 9 पीपल की पत्तियां लेकर चंदन की लकड़ी से उन पर श्रीराम लिखकर हनुमान का चढाएं और बाद में हनुमान के 108 चक्कर लगाकर प्रार्थना करें। आपके बिगड़ सारे काम चुटकी में बन जाएंगे।

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🚩श्री हनुमान का विवाह

हनुमान जी को बाल ब्रह्मचारी माना जाता है इसलिए हनुमान जी लंगोट धारण किए हर मंदिर और तस्वीरों में अकेले दिखते हैं। कभी भी अन्य देवताओं की तरह हनुमान जी को पत्नी के साथ नहीं देखा होगा। लेकिन अगर आप हनुमान के साथ उनकी पत्नी को देखना चाहते हैं तो आपको आंध्रप्रदेश जाना होगा।आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान जीके साथ उनकी पत्नी के भी दर्शन प्राप्त होते हैं। यह मंदिर इकलौता गवाह है हनुमान जी के विवाह का। ऎसी मान्यता है कि हनुमान जी जब अपने गुरु सूर्य देव से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उस दौरान एक विद्या जिसे सिर्फ विवाहित सीख सकते थे, के लिये, सूर्य देव ने हनुमान जी के सामने शर्त रख दी कि अब आगे कि शिक्षा तभी प्राप्त कर सकते हो जब तुम विवाह कर लो।ऎसे में आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्राण ले चुके हनुमान जी के लिए दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई। शिष्य को दुविधा में देखकर सूर्य देव ने हनुमान जी से कहा कि तुम मेरी पुत्री सुवर्चला से विवाह कर लो। सुवर्चला तपस्विनी थी। हनुमान जी से विवाह के बाद सुवर्चला वापस तपस्या में लीन हो गई। इस तरह हनुमान जी ने विवाह की शर्त पूरी कर ली और ब्रह्मचारी रहने का व्रत भी कायम रहा। हनुमान जी के विवाह का उल्लेख पराशर संहिता में भी किया गया है।मान्यता है कि हनुमान जी के इस मंदिर में आकर जो दंपत्ति हनुमान और उनकी पत्नी के दर्शन करते हैं उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और आपसी तालमेल बना रहता है। वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं विवाहित हनुमान जी।🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

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